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Showing posts from 2016

कविवर आध्यात्म मूर्ति स्वामी ओमा दी अक् को यश भारती सम्मान

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Shoojit Sircar's PINK Bollywood Movie Review

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"पिंक" एक घटना है-- मग़र एक ऐसी घटना जो रोज़ अपना क्षेत्र बदल कर देश-विदेश में कहीं न कहीं घटती रहती है ! "पिंक" एक त्रासदी है-- जो हर वर्ग और समाज की स्त्री को झेलना पड़ता है ! "पिंक" एक कहाँनी है-- जो आदमी और इन्सान जे बीच की लकीर खिंचती है ! "पिंक" एक विद्रोह है-- जो शरीर के बल को आत्मा के बल से ऊपर रखने को अस्वीकार करता है ! "पिंक" एक उम्मीद है-- जो स्त्री-पुरुष भेद से ऊपर उठते समाज की अगवानी करती है ! "पिंक" एक फ़लसफ़ा है-- जो इच्छा और अनिच्छा की गहरी मीमांशा करती है ! "पिंक" एक संदेश है-- जो "चरित्र" की परिभाषा का मूल्यांकन करने की इच्छा देता है ! "पिंक" एक "नहीं" को "नहीं" समझने की ऐसी शानदार नसीहत है जिसे "हाँ" कहने को दिल करता है !! "अमिताभ बच्चन कितने प्रभावशाली और वास्तविक हो सकते हैं । पिंक उसका उदहारण है । उनकी आँखे, उनका संवाद, उनका हाव भाव, उनकी झुर्रियां और उनकी बेचैनी सब मिल कर ये साबित करती हैं कि क्यों श्री बच्चन सदी के महानायक है

"क़िरदारे-आसिफ़"

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अच्छी बात है....! हाँ ! यही एक जुमला था..जो वो अक्सर दुहराते थे... कोई भी दौर हो कोई भी मौक़ा हो कोई भी शख्स..उन्हें उसमें एक न एक अच्छी बात मिल ही जाती थी...जैसे हँस को नीर में क्षीर.. ! आँखों पर मोटा ऐनक... जैसे आसमान झलकाता दरीचा..सर पर शायराना टोपी..जैसे किसी फीक्रमन्द-पहाड़ की पुरअसरार चोटी..ज़रा सा झुकती रीढ़..जैसे नीम-सिज़दा किये कोई मोनिन..या अल्लाह की शान-ओ-अदब सर झुकाए कोई शरीफ़ बन्दा..जिसके हाथ में एक श्मशीरे-हक़ ... सूरते-क़लम लहराती जाती..हाँ ! कभी कभी ये इश्क़ के फूलों से भरपूर कोई नाज़ुक टहनी भी बन जाती..और फ़िज़ाओं में ग़ज़ल महकने लगती...!....उनकी आवाज़ में जंगली शेर की दहाड़ थी तो उमर ख्यायम की रुबाइयों में गूँजते रावाब का सोज़ भी था..सच की आवाज़ ऐसी ही होती है..! "हंगामा-हस्ती से अलग गोशा-नाशिनो/बेसूद रियाज़त का सिला माँग रहे हो..".... अपने वक़्त...अपने समाज को ख़ुद-मुख्तारी और मेहनत का सबक देने से पहले उन्होंने उसे अपनी ज़िंदगी में ढाला...वो ता'उम्र मेहनतकश रहे और दिलदार भी...उन्हें वक़्त ने कई थपेड़े दिए..दर्द दिए...बीमारियाँ दीं... लेकिन वो बस ये कह कर हँस देते.."च

उरी पर आतंकी हमले पर

उन लोगों की उम्र अभी मरने की तो नहीं थी  न ये वो जंग थी  जिसमे उनकी कुर्बानी होती  न ये दुर्घटना थी कोई  जिसे समाचार बनना था...  ये तो एक धोखा था  जैसे सोए शेर पर लकड़बग्घों का झुंड घात लगा कर हमला कर दे और नोच डाले ! ये तो ख़ौफ़ज़दा कुत्तों के धोख़े से काट लेने जैसा वाकया था ! या नाली के रास्ते आए साँपों का डसना / क्या पता साँप आस्तीन में ही हो ! मग़र इतना तो हुआ की सत्रह जवान जो अभी सत्तर साल तक सीना चौड़ा किये ज़िन्दा रहते अचानक से "क़त्ल" कर दिए गए ! तुम्हारा ख़ून भारत के ललाट पे तिलक बन कर दमक रहा है ! तुम्हारा ख़ून भारत की आँखों में उबल कर उतर रहा है ! तुम्हारा ख़ून भारत की नसों में ख़ौल रहा है / और ये कह रहा है --  हमे बदला नहीं चाहिए "इन्साफ़" चाहिए और आसमानी-किताबों में लिक्खा है "ख़ून का बदला ख़ून यही इन्साफ़ है" !! ओमा The अक् 19 sep 2016

"Hum Bharat Hain" seminar in DALIMSS

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On the 70th anniversary of our "Democratic Bharat", AKK Jagrit Matdaata Manch in association with DALIMSS School organised a seminar on our movement "Hum Bharat Hain". Senior Students of the school participated in the seminar with full enthusiasm. Vishal Bharat opened the seminar with his speech on the need to be "Bharat". He said that in the era, where people are joining many political organisations in the name of being a nationalist & those parties are using them to gain political benefit are misleading, there is a desparate need for people to become "Bharat" and join the "Hum Bharat Hain" Movement. Hitesh AKK said on the occasion that this is the time when fellow citizens have to realise when they are being used by such parties and think together as "Bharat". This, one-directional thinking is the only option to bring back our Unity in Diversity. Saqib Bharat urged the students to drop their surnames giv

सैकड़ों हिन्दू मुस्लिम बन्धुओं ने जाती-मज़हब की पहचान छोड़ कर अपना उपनाम भारत जोड़ कर मनाया जश्ने-आज़ादी

काशी " देश के लोकतंत्र को समर्पित संस्था "अक् जागृत मतदाता मंच" द्वारा प्रधान मंत्री के आह्वान पर देश की आज़ादी के 70वें साल पर मनाए जा रहे जश्ने-आज़ादी के अंतर्गत अक् के अभियान ऐलान करो हम भारत हैं  के चौथे वर्ष् पर जैतपुरा शाखा का उद्घाटन किया गया जहाँ सैकड़ो मुस्लिम बन्धुओं ने और कई हिन्दू भाइयों ने साकिब भारत के नेतृत्व में अपने उपनाम त्याग कर उसके स्थान पर "भारत" लगाया और भारत को किसी भी जात या मज़हब से ऊपर रख कर लोकतंत्र को मजबूत करने का वचन दिया । इस अवसर पर मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए स्वामी ओमा दी अक् ने कहा कि भारत को जनतंत्र की स्वतंत्रता प्राप्त हुए उनहत्तर साल बीत चुके हैं लेकिन अब तक भारत अपनी क्षमता के अनुसार विकास और वैभव नहीं प्राप्त कर सका है, सनातन धर्म के प्राकट्य और मानव कल्याण का उद्घोष करने वाले भारत में आज जिस तरह का चारित्रिक-सामाजिक-पतन देखने को मिल रहा है उसके पीछे आध्यत्मिक-दरिद्रता और देशप्रेम की कमी है जिसे सरकारी तौर पर पिछले कई सालों में अनदेखा किया गया है लेकिन अब थोड़ी सी उम्मीद जाग रही है। उन्होंने आगे कहा कि केवल सेक्युलरवा

Mohenjo-Daro Film Review

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"ना जाने कब ये मुम्बईया-फ़िल्मकार इतिहास से बालात्कार बंद करंगे ! 50-60 के दशक में जब धन और तकनीक की बहुत कमी थी तब हिन्दी-सिनेमा में यदि ऐतिहासिक-फिल्मो में इतिहास की झलक कम आती थी तो वो क्षम्य हो सकती है , किन्तु आज जब "इण्डियन-फ़िल्म-इंड्रस्टी" विशुद्ध मुनाफ़ाख़ोर-व्यापारियों का अड्डा बन चुकी है ऐसे में जब सैकङो करोड़ उड़ा कर भी  एक वाहियात और मसालेदार सिनेमा को ईतिहास के नाम पर परोसा जाता है तो बहुत रोष होता है । अभी "बाजिराओ-मस्तानी" की तक़लीफ़ मिटी भी नहीं थी कि "जोधा-अक़बर" जैसी नौटंकी बनाने वाले "आशुतोष गोवरेकर" ने एक नया तमाशा परोसा है "मोहेनजो दारो" (वैसे हिंदी के अनुसार इसे "मोहन जोदड़ो" होना चाहिए था) । इस फ़िल्म में बहुत कुछ है बड़े स्टार (हृतिक रोशन,कबीर बेदी), बड़ा संगीतकार (ए आर रहमान), बड़ा गीतकार (ज़ावेद अख़्तर) , मादक अभिनेत्री,बड़े बड़े सेट, इफ़ेक्ट, नाच-गाना, बड़ा बैनर...सब कुछ...बस नहीं है तो -- सार्थक कहाँनी, उस युग को छूता मधुर संगीत, समझ में आने और दिल में उतरने वाले गीत, प्रभावशाली अभिनय और इतिहास को उभार सकने व

Hiroshima

                   "हिरोशिमा"..... " चमकती रात तो उस रात भी वैसी सुकूँ की थी   हज़ारों साल से जैसे वो आती थी / सुलाती थी   मुलायम अब्र की कम्बल लपेटे चाँद लेटा था   कोई मासूम अफ़साना सुनता था सितारों को   बिना किस्से के सन्नाटी सी रातें कौन काटेगा   कहीं पर दूब के झुरमट में झींगुर गुनगुनाते थे   मुसल्सल रात भर, पाज़ेब जैसे छमछमाते थे   खिले थे रात में जो फूल / उनकी खुशबुएँ भीनी   हवा के पर पकड़ कर शहर के भीतर टहलती थीं   शहर जिसमे कई जोड़े मचलते छेड़ करते थे    कई बूढ़ी कराहें नींद को रह रह बुलाती थीं    कई बच्चे पकड़ कर हाथ माँ का/ मस्त सोए थे    कोई भी निगहबानी इससे बेहतर मिल नहीं सकती    ये छोटा सा शहर तस्वीर सा लगता था इस शब् भी ...   सुबह सूरज हटा कर कोहरा कोहरा नर्म पर्दों को   सजाए धुप की थाली फ़लक़ से नीचे उतरा था   हरे तालाब में हल्के गुलाबी से कँवल फूले   किरन लहरों पे अभ्रक से रंगोली सी बनाती थी   परिंदे लेके अंगड़ाई हवा में तैरने निकले   शहर की बूढ़े उठ कर देवताओं को मनाते थे

"योग" के लिए "योग्य" बनिए - ओमा द अक्

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नगर की आध्यात्मिक संस्था "अक्" एवं जिला सांस्कृतिक समिति, वाराणसी के संयुक्त तत्वाधान में "चरित्र यात्रा - योग और चरित्र" पर विचार गोष्ठी का कार्यक्रम सुबह-ए-बनारस प्राँगण,अस्सी घाट पर आयोजित हुआ। कार्यक्रम में आदरणीय डॉ. राजेश्वर आचार्य "प्रभावरंग" ने  कहा कि आज हम योग नही योगा करते है जबकि योग हमे स्वयं की चेतना और प्रकृति की संवेदना से जुड़ना सिखाता है लेकिन योगा बस शरीर को सिर्फ हिलाने मात्र की क्रिया है। आज समाज में जिस तरह से योग का बाज़ारीकरण हुआ है उससे योग की और योगियों की छवि धूमिल होती जा रही है। योग मात्र शरीर के विकास की प्रक्रिया नहीं वह मन, चेतना एवं संवेदना के विकास की प्रक्रिया है और चरित्र इसी मुख्य प्रक्रिया का फल है। अपने आचरण की योगिक प्रक्रिया द्वारा हम नर से नारायण की भूमिका की तरफ प्रस्थान करते है और इसमे हमारा चरित्र ही मूल तत्व होता है। कार्यक्रम में आध्यात्म मूर्ति ओमा द अक् ने कहा कि विश्व योग दिवस के लिए वह भारत सरकार को धन्यवाद देते है कि उनकी वजह से यह मुमकिन हुआ की इस दिन को विश्व सिर्फ योग को ही नहीं भारतवर्ष को

"Womanhood turned hex for Marilyn Monroe in consumerist era – Swami OMA The AKK"

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Enlightened citizens of Kashi(Varanasi) gathered in the city today for the seminar “Marilyn-Lust & Liberation” organized by the spiritual organization “AKK-OMA’s Cosmos for AKK Revelation” to celebrate the 90th Birth Anniversary of eminent Hollywood actress and sex goddess “Marilyn Monroe” at Barista Lounge, Cantonment. This was a first of its kind event where Marilyn Monroe’s birthday was celebrated by any organization in India & first time in the world where a spiritual guru gave his discourse over the sex symbol, “Marilyn Monroe”. Explaining some incidents from the life of Marilyn Monroe, Aadhyatm Murti Swami OMA The AKK said that her womanhood turned out to be a hex for her in the consumerist society. Marilyn Monroe went through many sore moments in her life due to the distorted lust of society. Marilyn did not just symbolize the American society but also the modern society where every being turns into mere objects. Aadhyatm Murti Swa

बुद्ध वेदान्त से अलग नहीं- स्वामी ओमा द अक्

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काशी 21 मई 2016 देश की आध्यात्मिक संस्था अक् - ओमास् कॉसमॉस फॉर अक् रेवेलेशन एवं अक् जागृत मतदाता मंच द्वारा चरित्र-यात्रा श्रृंखला के अंतर्गत इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर "सम्यक दृष्टि" कार्यक्रम का आयोजन उमा पैलेस, कैंटोनमेंट में किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य सम्पूर्ण विश्व को अपने विचारो से प्रभावित करने वाले बुद्ध के जीवन की समालोचनात्मक दृष्टि से उसकी प्रासंगिता पर था। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में जाने माने कवी एवं विचारक संस्कृति पुरुष डॉ उदय प्रताप सिंह जी उपस्तिथ रहे, जिनके काव्य और भाषण में बुद्ध के समतावादी विचारो की रसधार बहती हैं। इस अवसर पर उन्होंने कहा की समाजवाद के प्रथम प्रणेता गौतम बुद्ध थे। उन्होंने छूत-छात, जात-पात से ऊपर उठकर के आत्म कल्याण की नयी भूमिका लिखी और हिन्दू धर्म में एक नए सुधारवादी आन्दोलन की नीव रखी। साथ ही साथ उन्होंने अपनी कवितायेँ और ग़ज़ले सुनाई और आध्यात्म मूर्ति स्वामी ओमा दी अक् के प्रभावी प्रयास की सराहना की । इस अवसर पर अध्यक्षीय भाषण के दौरान आध्यात्म मूर्ति स्वामी ओमा दी अक् ने कहा बुद्ध के सकारात्मक और नकारा

Jungle Book Review by OMA The AKK

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 'Jungle Book' feels like reading an Epic - beautiful, well structured, sensitive, interesting, adventurous and sacred.  This film is a dream of childlike heart where nature is not biased and mingled together like 'trees in a forest',where law is 'stable like sky',  where humankind is not the crown but an obstruction to nature.  An amazing cinema where everyone speaks - lion, bear, fox, monkey and Mowgli in one single language. Rudyard Kipling was well aware of India's "Vasudev Kutumbakam" and this is the message of this movie! Do Watch Everyone... - OMA The AKK "जंगल बुक" एक सिनेमा ...जिसे देखना किसी महाकाव्य के पढ़ने का एहसास देता है, सुन्दर,सुगढ़,सुकोमल,रोचक,रोमांचक और पवित्र.... ये चलचित्र बालसुलभ-ह्रदय का स्वप्न है जहाँ सारी प्रकृति निष्कपट है और आपस में यूँ गुथी है जैसी "वृक्षों में जंगल"... जहाँ "अम्बर सा अटल क़ानून" है.. और जहाँ मनुष्यता प्रकृति का सिरमौर नहीं बल्कि उसकी बाधा है... एक अद्भुत सिनेमा जह

ओमा दी अक् ने बताया भारत माता की जय को केवल दारुल उलूम का देश के हिन्दू मुस्लिम बांटने का नया पैतरा

आध्यत्म मूर्ति ओमा दी अक् ने कहा की इस्लाम की बुनियादी सोच में एक ख़ुदा की इबादत की बात है लेकिन साथ साथ मादरे वतन के साथ वफ़ादारी को आधा ईमान भी कहा गया है, स्वामी ओमा ने कहा की "भारत माता की जय" वास्तव में किसी देवी या देवता की इबादत नहीं बल्कि अपने वतन की सलामती और फ़तह की घोषणा या दुआ भर है, जिसे इस्लाम कत्तई मना नहीं करता, लेकिन कुछ लोगों के समूह अब किसी भी सम्प्रदाय की ठेकेदारी ले लेते हैं और उसका ख़ामियाजा पूरी कौम को भुगतना पड़ता है, यही हाल दारुल उलूम का है जो "जय" शब्द को इबादत से जोड़ कर मुस्लिम समुदाय को गुमराह कर रहा है और नफ़रत फैला रहा है जबकि इस शब्द के उर्दू में अर्थ "फ़तह" और "सलामती" होगी, और अपने वतन की सलामती की दुआ या फ़तह का एलान कत्तई शिर्क नहीं, ओमा दी अक् ने साथ ही ये प्रश्न भी उठाया की क्या दारुल उलूम के हिसाब से "जय हिन्द" भी शिर्क नहीं हुआ ? स्वामी ओमा दी अक् ने कहा की ऐसी बातें केवल देश में हिन्दू मुसलमान को बाँटने और नफ़रत फैलाने का काम करती हैं । दारुल उलूम को ऐसे फ़तवे देने से पहले गहराई से विचार करना चाहिए, और स
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"गौरैया" " वो आती थी   जब आँगन में   अपना छोटा कुनबा ले कर   लगता था   दादी-नानी के गाँव से संबंधी आए हैं   जिनको घर के हर कोने पे   बरसों का अधिकार मिला है   जो चाहें वो खा सकते हैं   गा-सकते, सुस्ता-सकते हैं   घर भर में चहका करती थी   अपने नन्हे चूज़े ले कर   रोशनदानों में रहती थी...   अब वो रौशनदान नहीं है   अब मेरे मेहमान नहीं हैं   दादी-नानी गुज़र गईं   अब संबंधों को कौन निभाए   गौरैया अब नज़र न आए   गौरैया अब नज़र न आए .....      " स्वामी ओमा दी अक् "           द्वारा विश्व गौरैया दिवस पर समर्पित नज़्म...                               20/3/2016

रेशनल होने का अर्थ एन्टी नेशनल होना कत्तई नहीं हो सकता-- स्वामी ओमा दी अक्

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काशी, 14 फरवरी 2016 मदर हलीमा सेंट्रल स्कूल (चौहट्टा) में आयोजित एक कार्यक्रम में जे एन यु के मुद्दे पर बोलते हुए स्वामी ओमा दी अक् ने कहा की-- "भारतीय सभ्यता-संस्कृति-समाज और संविधान में मनुष्य की स्वतंत्रता और स्वायत्ता का जितना ध्यान रखा जाता है; विश्व में और कहीं नहीं मिलता..  लेकिन इसी सहिष्णुता और स्वतंत्रता का अनुचित लाभ लेने वाले सत्तालोलुपों की भारी संख्या इस राष्ट्र के तिरंगे वट-वृक्ष में दीमक की तरह लगी है.. कभी मानवता, कभी साम्प्रदायिकता, कभी स्त्री या दलित विमर्श तो कभी अभिव्यक्ति की आज़ादी का नाम ले कर ये तथाकथित "प्रोग्रेसिव-सेकुलर्स" जिन्हें आम ज़ुबान में "वामपंथी" कहा जाता है , अनेक उत्पात मचाते रहते हैं.. अभी शनि मंदिर के नाम पर सनातन धर्म को अपमानित करने का प्रयास थमा भी नहीं था, की भारत का "मस्तिष्क" कहे जाने वाले "जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी" में "शहीद अफज़ल गुरु और कश्मीर की आज़ादी" जैसे "राष्ट्र विरोधी" नारे लगे..  मेरा स्वयम् का अनुभव जे एन यु को ले कर ये है की वहाँ के तमाम वामपंथी संगठन वस्तुतः &q

गणतंत्र दिवस पर “भारतीय गणतंत्र में सहिष्णुता”

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बुर्का या घूंघट का स्त्री के अस्तित्व पे असर

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"इस्लाम" में महिलाओं को हिज़ाब या नक़ाब(बढ़ते बढ़ते बुर्का) पहनना, यक़ीनन ये एक दौर,एक समाज, एक सभ्यता और एक भौगौलिक सिमा की आवश्यकता रही होगी । लेकिन इस्लाम के मूलभूत नियमों (तौहीद) में इसका कोई स्थान नहीं । और सम्प्रदाय या आस्था के मूल को छोड़ कर अन्य सभी बातें समय और स्थान के अनुसार यदि नहीं बदली जाएं तो वरदान से अभिशाप में बदल जाती हैं । जो आज मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहा है / आज के दौर में जब पूरी दुनिया अनियंत्रित रूप से एक वैश्विक गाँव की ओर बह रही है ऐसे में पर्दा प्रथा को बचाना एक बचकानी और मूर्खता पूर्ण कोशिश बन जाती है । आने वाले वक़्त में (यानि 4 दशकों के भीतर) जान संसार पूरी तरह से ग्लोबल हो जाएगा और तकनीक भावनाओं का स्थान घेर लेंगी, सम्प्रदाय जीर्ण और मृत हो जाएंगे ऐसे वक़्त में जब सब सामजिक ढाँचे नष्ट हो जाएंगे उस वक़्त इस प्रथा को याद करके केवल हँसा और रोया जाएगा , हँसी इसलिए की ये मूर्खता कितने बरस ढोई गई, और रोना उन मजलूम, निरीह महिलाओं के जीवन के बारे में सोच कर जो कहने को तो "अशरफुल-मख्लूक़"(श्रेष्टतम जीव) की कतार में पैदा हुईं लेकिन ज़िन्दगी ए