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बसंत

बसंती भागीदारी *************** बसंत तुम सब जगह क्यों नहीं आते..? तुम आते तो हो राजप्रासादों में विशाल उपवन में पूंजीपतियों राजनेताओं और नौकरशाहों की तिजोरियों में/ और तो और आजकल मल्टीफैसलिटी हस्पतालों पब्लिक स्कूलों मीडया हाउसेज और प्रयोजित धर्मगुरुओं की बैलेंस शीट में भी तुम सदाबहार हो गए हो/ तुम आते तो हो किसी भी मुर्दाखोर समुदाय के कुटिल मस्तिष्क में फिर उनकी अय्याश दुनिया में भी! किन्तु तुम क्यों नही आते हो किसी ट्राफिक सिग्नल के किनारे अनायास पैदा हुए दुधमुंहे बच्चे के भूखे पेट में/ किसी बलात्कारी के पथरीले मन में/ किसी लोभी की बन्द मुट्ठी में या-- अचानक बन्द हुए देश की सौकड़ो मील लंबी रेल पटरियों पर/ सांस के लिए तड़पते बिस्तरों के आसपास/ बसंत तुम क्यों नहीं आते किसी अफवाह के कारण हुए दंगे में झुलसते नगर के दंगाइयों के विवेक में/ भूख मिटाने को कटिबद्ध कर्ज से आत्महत्या करते ग्राम-देवताओं की जेब में/ धन, सम्प्रदाय व समुदाय के नाम पर घृणा फैलाते सत्ता लोलुप आंखों में किसी ओस भरी सुबह से क्यों नही उतराते हो तुम की उनके सड़ते हुए मन मे भी

गणतंत्र

लोकतंत्र क् नारा बा ईहे एक सहारा बा बाकी देस क् कोना कोना अटल पटल अनिहारा बा लोकतंत्र क् नारा बा.... मड़ई-लुग्गा-रासन गुल नेता जी क् भाषन फुल मजदूरी कउड़ी-कउड़ी निर्धन के लतियावें कुल एकरे बदे लड़ल भारत इहे नवा-भिनसारा बा लोकतंत्र क् नारा बा ईहे एक सहारा बा.... नोचा और कचोटा बाबू ले के थरिया-लोटा बाबू भांग-धतूरा घोटा बाबू वरना पड़िये सोटा बाबू आन्हर भइल जमाना आधी-रात कहा उजियारा बा लोकतंत्र क् नारा बा ईहे एक सहारा बा... सुना रेडियो टीवी मा देस बढ़त बा तेजी मा देस का बोली सत्तर ठो देस पढ़त अंग्रेजी मा खेत-किसान बुड़ें-मर जावें सूट-बूट चटकारा बा लोकतंत्र क् नारा बा ईहे एक सहारा बा.... मुठ्ठी में दुनिया क सपना भट्टी में घर के सच्चाई ऐसे कइसे देस चल सकी अइसे राज-काज लूट जाई उठा बांध के मुठ्ठी रजऊ कहे तिरंगा-प्यारा बा लोकतंत्र क् नारा बा ईहे एक सहारा बा....!! 26 जनवरी 2022 ओमा The अक्©

ख़तरा

ख़तरा है भई ख़तरा है उनकी जान को ख़तरा है! उनकी जान बचाने को किसको लहूलुहान करें किस बस्ती में आग लगाएं इंसा को हैवान करें/ उनकी जान बचाने को किसकी गर्दन तोड़ेंगे किसके घर को लूटेंगे कितनो के सर फोड़ेगें/ ख़तरा है भई ख़तरा है उनकी जान को ख़तरा है उनकी जान क़ीमती है बाक़ी सब तो उपले हैं गोबर के सूखे उपले भट्टी में फुंक जाने को हंडिया को गर्माने को रोज़ जलाए जाते हैं रोज़ जलाए जाएंगे उन्हें कँपकपी आई है ये सुलगाए जाएंगे बेचारे सूखे उपले लोकतंत्र के चूल्हे में रोज़ जलाए जाते हैं फिर भी नहीं उबरते हैं उनकी जान को मरते हैं जिनकी जान को ख़तरा है ख़तरा है भई ख़तरा है...!!" 18 jan 2022 ओमा The अक्©