Shoojit Sircar's PINK Bollywood Movie Review

"पिंक" एक घटना है-- मग़र एक ऐसी घटना जो रोज़ अपना क्षेत्र बदल कर देश-विदेश में कहीं न कहीं घटती रहती है !

"पिंक" एक त्रासदी है-- जो हर वर्ग और समाज की स्त्री को झेलना पड़ता है !

"पिंक" एक कहाँनी है-- जो आदमी और इन्सान जे बीच की लकीर खिंचती है !

"पिंक" एक विद्रोह है-- जो शरीर के बल को आत्मा के बल से ऊपर रखने को अस्वीकार करता है !

"पिंक" एक उम्मीद है-- जो स्त्री-पुरुष भेद से ऊपर उठते समाज की अगवानी करती है !

"पिंक" एक फ़लसफ़ा है-- जो इच्छा और अनिच्छा की गहरी मीमांशा करती है !

"पिंक" एक संदेश है-- जो "चरित्र" की परिभाषा का मूल्यांकन करने की इच्छा देता है !

"पिंक" एक "नहीं" को "नहीं" समझने की ऐसी शानदार नसीहत है जिसे "हाँ" कहने को दिल करता है !!

"अमिताभ बच्चन कितने प्रभावशाली और वास्तविक हो सकते हैं । पिंक उसका उदहारण है । उनकी आँखे, उनका संवाद, उनका हाव भाव, उनकी झुर्रियां और उनकी बेचैनी सब मिल कर ये साबित करती हैं कि क्यों श्री बच्चन सदी के महानायक हैं ।। "

"सरकार की "सिनेमाई सोच" में परिपक्वता है  (यद्यपि उन पर वामपंथी प्रभाव है लेकिन सुगढ़) । वो कहाँनी को "पूरा" सुनाते हैं और एक एक फ्रेम पर काम करते हैं । वि शांता राम और मनोज कुमार के बाद सरकार की फिल्म्स में "सिंबल्स" बड़े बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल होते हैं (जैसे बच्चन का मास्क) ।। सरकार ने एक विश्वस्तरीय सिनेमा दिया है इसके लिए बधाई ।। "

"पिंक का स्क्रीनप्ले लाजवाब है और एक बराबर है । सिनेमा आपको बाँधे रखता है (हाँ कुछ लोग जो मसाला देखते हैं उन्हें नहीं) । फिल्म का पार्श्व संगीत कहाँनी को गहरा करता है । हाँ ! फिल्म की मुख्य अभिनेत्री का अभिनय बहुत साधारण और कहीं कहीं निम्न है जिसकी वज़ह से कई सीन अपना वज़न गंवा देते हैं सरकार इस फिल्म में और अच्छी "अभिनेत्री" को ले कर कमाल कर सकते थे , ख़ैर ।।"

"No" ये नो "पिंक" में इस्तेमाल बेशुमार-अंग्रेजी के लिए जो इसके "हिंदी" सिनेमा होने पर संदेह पैदा करता है । और देश के एक बड़े हिस्से से काट देता है (अन्यथा ये फिल्म सप्ताह भर में 70 करोण कमाई करती) । पता नहीं आज कल के तथाकथित हिंदी सिनेमा वालों को अँग्रेजी बोलने का और उसीके माध्यम से आधुनिकता,प्रगतिशीलता और वास्तविकता दिखाने का भरम बढ़ता जा रहा है, हिंदी-सिनेमा में ये प्रयोग बेहद घातक परिणाम देने वाला सिद्ध होगा । "भाषा किसी सिनेमा का चरित्र गढ़ती है न की चरित्र की भाषा सिनेमा का " । हॉलीवुड में तमाम ऐसी फिल्म्स हैं जिनमें ग़ैर अंग्रेजी के चरित्र होते हैं लेकिन वो अंग्रेजी बोलते हैं अथवा सबटाइटल्स का प्रयोग होता है । लेकिन हिन्दी सिनेमा वालों को या तो "भाषाई-समरूपता" का कोई ज्ञान नहीं । या किसी षड्यंत्र के अंतर्गत अब "हिन्दी सिनेमा" को "हिंगलिश-सिनेमा" में बदलने की कोशिश हो रही है..जिसके लिए हर सिनेमा प्रेमी का "नहीं" होना चाहिए .. ख़ैर !

"पिंक" एक ऐसी  फिल्म है जिसे पूरे हिन्दोस्तान को देखना चाहिए और स्त्री-पुरुषों को साथ बैठ कर देखना चाहिए । भाइयो को अपनी बहनों के साथ/पतियों को अपनी पत्नियों के साथ/प्रेमियों को प्रेमिकाओं के साथ और बेटों को अपनी माँओं के साथ.. "क्यों की 'नहीं' केवल सेक्स के सन्दर्भ में ही नहीं जीवन के कई सन्दर्भों में 'नहीं' ही कहलाएगा ..।।

स्वामी ओमा The अक्
23 सितम्बर 2016

Popular posts from this blog

बुद्ध वेदान्त से अलग नहीं- स्वामी ओमा द अक्

एकला चलो रे... (बुद्ध और सिकंदर) - ओमा द अक्

"Womanhood turned hex for Marilyn Monroe in consumerist era – Swami OMA The AKK"