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Showing posts from August, 2016

"Hum Bharat Hain" seminar in DALIMSS

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On the 70th anniversary of our "Democratic Bharat", AKK Jagrit Matdaata Manch in association with DALIMSS School organised a seminar on our movement "Hum Bharat Hain". Senior Students of the school participated in the seminar with full enthusiasm. Vishal Bharat opened the seminar with his speech on the need to be "Bharat". He said that in the era, where people are joining many political organisations in the name of being a nationalist & those parties are using them to gain political benefit are misleading, there is a desparate need for people to become "Bharat" and join the "Hum Bharat Hain" Movement. Hitesh AKK said on the occasion that this is the time when fellow citizens have to realise when they are being used by such parties and think together as "Bharat". This, one-directional thinking is the only option to bring back our Unity in Diversity. Saqib Bharat urged the students to drop their surnames giv

सैकड़ों हिन्दू मुस्लिम बन्धुओं ने जाती-मज़हब की पहचान छोड़ कर अपना उपनाम भारत जोड़ कर मनाया जश्ने-आज़ादी

काशी " देश के लोकतंत्र को समर्पित संस्था "अक् जागृत मतदाता मंच" द्वारा प्रधान मंत्री के आह्वान पर देश की आज़ादी के 70वें साल पर मनाए जा रहे जश्ने-आज़ादी के अंतर्गत अक् के अभियान ऐलान करो हम भारत हैं  के चौथे वर्ष् पर जैतपुरा शाखा का उद्घाटन किया गया जहाँ सैकड़ो मुस्लिम बन्धुओं ने और कई हिन्दू भाइयों ने साकिब भारत के नेतृत्व में अपने उपनाम त्याग कर उसके स्थान पर "भारत" लगाया और भारत को किसी भी जात या मज़हब से ऊपर रख कर लोकतंत्र को मजबूत करने का वचन दिया । इस अवसर पर मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए स्वामी ओमा दी अक् ने कहा कि भारत को जनतंत्र की स्वतंत्रता प्राप्त हुए उनहत्तर साल बीत चुके हैं लेकिन अब तक भारत अपनी क्षमता के अनुसार विकास और वैभव नहीं प्राप्त कर सका है, सनातन धर्म के प्राकट्य और मानव कल्याण का उद्घोष करने वाले भारत में आज जिस तरह का चारित्रिक-सामाजिक-पतन देखने को मिल रहा है उसके पीछे आध्यत्मिक-दरिद्रता और देशप्रेम की कमी है जिसे सरकारी तौर पर पिछले कई सालों में अनदेखा किया गया है लेकिन अब थोड़ी सी उम्मीद जाग रही है। उन्होंने आगे कहा कि केवल सेक्युलरवा

Mohenjo-Daro Film Review

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"ना जाने कब ये मुम्बईया-फ़िल्मकार इतिहास से बालात्कार बंद करंगे ! 50-60 के दशक में जब धन और तकनीक की बहुत कमी थी तब हिन्दी-सिनेमा में यदि ऐतिहासिक-फिल्मो में इतिहास की झलक कम आती थी तो वो क्षम्य हो सकती है , किन्तु आज जब "इण्डियन-फ़िल्म-इंड्रस्टी" विशुद्ध मुनाफ़ाख़ोर-व्यापारियों का अड्डा बन चुकी है ऐसे में जब सैकङो करोड़ उड़ा कर भी  एक वाहियात और मसालेदार सिनेमा को ईतिहास के नाम पर परोसा जाता है तो बहुत रोष होता है । अभी "बाजिराओ-मस्तानी" की तक़लीफ़ मिटी भी नहीं थी कि "जोधा-अक़बर" जैसी नौटंकी बनाने वाले "आशुतोष गोवरेकर" ने एक नया तमाशा परोसा है "मोहेनजो दारो" (वैसे हिंदी के अनुसार इसे "मोहन जोदड़ो" होना चाहिए था) । इस फ़िल्म में बहुत कुछ है बड़े स्टार (हृतिक रोशन,कबीर बेदी), बड़ा संगीतकार (ए आर रहमान), बड़ा गीतकार (ज़ावेद अख़्तर) , मादक अभिनेत्री,बड़े बड़े सेट, इफ़ेक्ट, नाच-गाना, बड़ा बैनर...सब कुछ...बस नहीं है तो -- सार्थक कहाँनी, उस युग को छूता मधुर संगीत, समझ में आने और दिल में उतरने वाले गीत, प्रभावशाली अभिनय और इतिहास को उभार सकने व

Hiroshima

                   "हिरोशिमा"..... " चमकती रात तो उस रात भी वैसी सुकूँ की थी   हज़ारों साल से जैसे वो आती थी / सुलाती थी   मुलायम अब्र की कम्बल लपेटे चाँद लेटा था   कोई मासूम अफ़साना सुनता था सितारों को   बिना किस्से के सन्नाटी सी रातें कौन काटेगा   कहीं पर दूब के झुरमट में झींगुर गुनगुनाते थे   मुसल्सल रात भर, पाज़ेब जैसे छमछमाते थे   खिले थे रात में जो फूल / उनकी खुशबुएँ भीनी   हवा के पर पकड़ कर शहर के भीतर टहलती थीं   शहर जिसमे कई जोड़े मचलते छेड़ करते थे    कई बूढ़ी कराहें नींद को रह रह बुलाती थीं    कई बच्चे पकड़ कर हाथ माँ का/ मस्त सोए थे    कोई भी निगहबानी इससे बेहतर मिल नहीं सकती    ये छोटा सा शहर तस्वीर सा लगता था इस शब् भी ...   सुबह सूरज हटा कर कोहरा कोहरा नर्म पर्दों को   सजाए धुप की थाली फ़लक़ से नीचे उतरा था   हरे तालाब में हल्के गुलाबी से कँवल फूले   किरन लहरों पे अभ्रक से रंगोली सी बनाती थी   परिंदे लेके अंगड़ाई हवा में तैरने निकले   शहर की बूढ़े उठ कर देवताओं को मनाते थे