Hiroshima
"हिरोशिमा"..... " चमकती रात तो उस रात भी वैसी सुकूँ की थी हज़ारों साल से जैसे वो आती थी / सुलाती थी मुलायम अब्र की कम्बल लपेटे चाँद लेटा था कोई मासूम अफ़साना सुनता था सितारों को बिना किस्से के सन्नाटी सी रातें कौन काटेगा कहीं पर दूब के झुरमट में झींगुर गुनगुनाते थे मुसल्सल रात भर, पाज़ेब जैसे छमछमाते थे खिले थे रात में जो फूल / उनकी खुशबुएँ भीनी हवा के पर पकड़ कर शहर के भीतर टहलती थीं शहर जिसमे कई जोड़े मचलते छेड़ करते थे कई बूढ़ी कराहें नींद को रह रह बुलाती थीं कई बच्चे पकड़ कर हाथ माँ का/ मस्त सोए थे कोई भी निगहबानी इससे बेहतर मिल नहीं सकती ये छोटा सा शहर तस्वीर सा लगता था इस शब् भी ... सुबह सूरज हटा कर कोहरा कोहरा नर्म पर्दों को सजाए धुप की थाली फ़लक़ से नीचे उतरा था हरे तालाब में हल्के गुलाबी से कँवल फूले ...