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"गौरैया" " वो आती थी   जब आँगन में   अपना छोटा कुनबा ले कर   लगता था   दादी-नानी के गाँव से संबंधी आए हैं   जिनको घर के हर कोने पे   बरसों का अधिकार मिला है   जो चाहें वो खा सकते हैं   गा-सकते, सुस्ता-सकते हैं   घर भर में चहका करती थी   अपने नन्हे चूज़े ले कर   रोशनदानों में रहती थी...   अब वो रौशनदान नहीं है   अब मेरे मेहमान नहीं हैं   दादी-नानी गुज़र गईं   अब संबंधों को कौन निभाए   गौरैया अब नज़र न आए   गौरैया अब नज़र न आए .....      " स्वामी ओमा दी अक् "           द्वारा विश्व गौरैया दिवस पर समर्पित नज़्म...                               20/3/2016