ओमा दी अक् ने बताया भारत माता की जय को केवल दारुल उलूम का देश के हिन्दू मुस्लिम बांटने का नया पैतरा

आध्यत्म मूर्ति ओमा दी अक् ने कहा की इस्लाम की बुनियादी सोच में एक ख़ुदा की इबादत की बात है लेकिन साथ साथ मादरे वतन के साथ वफ़ादारी को आधा ईमान भी कहा गया है, स्वामी ओमा ने कहा की "भारत माता की जय" वास्तव में किसी देवी या देवता की इबादत नहीं बल्कि अपने वतन की सलामती और फ़तह की घोषणा या दुआ भर है, जिसे इस्लाम कत्तई मना नहीं करता, लेकिन कुछ लोगों के समूह अब किसी भी सम्प्रदाय की ठेकेदारी ले लेते हैं और उसका ख़ामियाजा पूरी कौम को भुगतना पड़ता है, यही हाल दारुल उलूम का है जो "जय" शब्द को इबादत से जोड़ कर मुस्लिम समुदाय को गुमराह कर रहा है और नफ़रत फैला रहा है जबकि इस शब्द के उर्दू में अर्थ "फ़तह" और "सलामती" होगी, और अपने वतन की सलामती की दुआ या फ़तह का एलान कत्तई शिर्क नहीं, ओमा दी अक् ने साथ ही ये प्रश्न भी उठाया की क्या दारुल उलूम के हिसाब से "जय हिन्द" भी शिर्क नहीं हुआ ?
स्वामी ओमा दी अक् ने कहा की ऐसी बातें केवल देश में हिन्दू मुसलमान को बाँटने और नफ़रत फैलाने का काम करती हैं । दारुल उलूम को ऐसे फ़तवे देने से पहले गहराई से विचार करना चाहिए, और साथ साथ किसी भी मुसलमान को ऐसे फ़तवों को मानने से पहले अपने दिल दिमाग़ का प्रयोग करना चाहिए ।।


' हम भारत हैं अभियान ' के संचालक साकिब भारत ने "अक् जाग्रत मतदाता मंच' द्वारा आयोजित गोष्टि में "दारुल उलूम" के फ़तवे पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा की यदि किसी मुसलमान को अपनी रज़ामंदी से जय हिन्द कहने पेें कोई कोई ऐतराज़ नही है  तो भारत माता की जय बोलने में क्या तक़लीफ़ हो सकती है , आख़िर अपनी मादरे-वतन की सलामती की दुआ कोई गुनाह तो नहीं, इस्लाम एक लचीला मज़हब है और इसमें वतन से वफ़ादारी भी ईमान का हिस्सा है, साकिब भारत ने आगे कहा की इस वक़्त जब देश को एक जुट हो कर आगे बढ़ने की आवश्यकता तब इस तरह की बातें मज़हबी दरार का काम करती हैं, इस देश में सभी को उसकी आज़ादी से अपना धर्म निभाने का अधिकार प्राप्त है ऐसे में हमे अपने संविधान और सरकार पर भरोषा रखना चाहिए, उन्होंने ये भी कहा की जब आरएसएस प्रमुख  मोहन भागवत ने भी कहे डाला जय हिन्द बोलना कोई ज़रूरी नही ये स्वेच्छा की बात है  जिसे बोलना हो बोले नही बोलना न बोले , फिर इस तरह के फ़तवे का क्या अर्थ है ।।

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