"योग" के लिए "योग्य" बनिए - ओमा द अक्
नगर की आध्यात्मिक संस्था "अक्" एवं जिला सांस्कृतिक समिति, वाराणसी के संयुक्त तत्वाधान में "चरित्र यात्रा - योग और चरित्र" पर विचार गोष्ठी का कार्यक्रम सुबह-ए-बनारस प्राँगण,अस्सी घाट पर आयोजित हुआ।
कार्यक्रम में आदरणीय डॉ. राजेश्वर आचार्य "प्रभावरंग" ने कहा कि आज हम योग नही योगा करते है जबकि योग हमे स्वयं की चेतना और प्रकृति की संवेदना से जुड़ना सिखाता है लेकिन योगा बस शरीर को सिर्फ हिलाने मात्र की क्रिया है। आज समाज में जिस तरह से योग का बाज़ारीकरण हुआ है उससे योग की और योगियों की छवि धूमिल होती जा रही है। योग मात्र शरीर के विकास की प्रक्रिया नहीं वह मन, चेतना एवं संवेदना के विकास की प्रक्रिया है और चरित्र इसी मुख्य प्रक्रिया का फल है। अपने आचरण की योगिक प्रक्रिया द्वारा हम नर से नारायण की भूमिका की तरफ प्रस्थान करते है और इसमे हमारा चरित्र ही मूल तत्व होता है।
कार्यक्रम में आध्यात्म मूर्ति ओमा द अक् ने कहा कि विश्व योग दिवस के लिए वह भारत सरकार को धन्यवाद देते है कि उनकी वजह से यह मुमकिन हुआ की इस दिन को विश्व सिर्फ योग को ही नहीं भारतवर्ष को भी याद करेगा। साथ उन्होंने खेद प्रकट किया और कहा कि योग शुद्ध रूप से साम्प्रदायिक है और योग सनातन धर्मी मीमांसा की पैदाइश है । समस्या यह है कि विगत कुछ वर्षों से साम्प्रदायिक होना गाली की तरह इस्तेमाल होने लगा है, सम्प्रदाय कोई गाली नहीं होती।
धर्म प्रकृति का मूल है अगर परमात्मा की कोई अभिव्यक्ति होती है तो वह धर्म के रूप में होती है। "सम्प्रदाय" धर्म का स्वभाव है जिसे हमारे धर्मात्माओं द्वारा उस परमात्मा की खोज में चुना। योग दर्शन सनातन धर्म की एक शाखा है जिसे पतंजलि ने अपने काल में परिष्कृत किया। क्या सूफी संगीत सुनने से कोई मुसलमान हो जाता है या किसी हिन्दू गुरु से दीक्षा लेने पर कोई मुसलमान हिन्दू हो जाता है ? अगर योग में ॐ को यह स्वीकार किया गया है कि वह ध्वनि आपकी चेतना को प्रदीप्त कर सकती है तो इस नाद के साथ जुड़ जाने में किसी सम्प्रदाय को कोई क्षति नहीं पहुचेगी। उन्होंने कहा कि श्वांस नहीं जानती की मनुष्य का धर्म क्या है, योग सबके लिए है। शरीर का मात्र एक धर्म है की वो आनंदित और शांत होना चाहता है और योग आपको कैसे अपने जीवन मे शांतचित्त रहना है यह सिखाता है। योग हमे सिखाता है की हम शरीर से ऊपर भी कुछ हैं।
उन्होंने कहा विश्व योग दिवस को मात्र आसन दिवस बना दिया गया है जो योग के नियम के विरोध में है। आसन से पहले योग में यम और नियम मनुष्य के लिए बहुत ज़रूरी है वरना आसन से सिर्फ मनुष्य अपने को और बीमार कर लेगा। जब मनुष्य अपने मन, वचन और कर्म में एक तारतम्य बैठा लेता है तो इन सब के योग से उस व्यक्ति का चरित्र महान बनता है। कार्यक्रम में मुख्य रूप से रत्नेश वर्मा, आनंद सिंह, साकिब भारत के साथ भारी संख्या में आम जन की मौजूदगी रही। कार्यक्रम का सञ्चालन अजय गुप्ता और धन्यवाद ज्ञापन हितेश अक् ने किया।