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Showing posts from September, 2016

Shoojit Sircar's PINK Bollywood Movie Review

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"पिंक" एक घटना है-- मग़र एक ऐसी घटना जो रोज़ अपना क्षेत्र बदल कर देश-विदेश में कहीं न कहीं घटती रहती है ! "पिंक" एक त्रासदी है-- जो हर वर्ग और समाज की स्त्री को झेलना पड़ता है ! "पिंक" एक कहाँनी है-- जो आदमी और इन्सान जे बीच की लकीर खिंचती है ! "पिंक" एक विद्रोह है-- जो शरीर के बल को आत्मा के बल से ऊपर रखने को अस्वीकार करता है ! "पिंक" एक उम्मीद है-- जो स्त्री-पुरुष भेद से ऊपर उठते समाज की अगवानी करती है ! "पिंक" एक फ़लसफ़ा है-- जो इच्छा और अनिच्छा की गहरी मीमांशा करती है ! "पिंक" एक संदेश है-- जो "चरित्र" की परिभाषा का मूल्यांकन करने की इच्छा देता है ! "पिंक" एक "नहीं" को "नहीं" समझने की ऐसी शानदार नसीहत है जिसे "हाँ" कहने को दिल करता है !! "अमिताभ बच्चन कितने प्रभावशाली और वास्तविक हो सकते हैं । पिंक उसका उदहारण है । उनकी आँखे, उनका संवाद, उनका हाव भाव, उनकी झुर्रियां और उनकी बेचैनी सब मिल कर ये साबित करती हैं कि क्यों श्री बच्चन सदी के महानायक है

"क़िरदारे-आसिफ़"

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अच्छी बात है....! हाँ ! यही एक जुमला था..जो वो अक्सर दुहराते थे... कोई भी दौर हो कोई भी मौक़ा हो कोई भी शख्स..उन्हें उसमें एक न एक अच्छी बात मिल ही जाती थी...जैसे हँस को नीर में क्षीर.. ! आँखों पर मोटा ऐनक... जैसे आसमान झलकाता दरीचा..सर पर शायराना टोपी..जैसे किसी फीक्रमन्द-पहाड़ की पुरअसरार चोटी..ज़रा सा झुकती रीढ़..जैसे नीम-सिज़दा किये कोई मोनिन..या अल्लाह की शान-ओ-अदब सर झुकाए कोई शरीफ़ बन्दा..जिसके हाथ में एक श्मशीरे-हक़ ... सूरते-क़लम लहराती जाती..हाँ ! कभी कभी ये इश्क़ के फूलों से भरपूर कोई नाज़ुक टहनी भी बन जाती..और फ़िज़ाओं में ग़ज़ल महकने लगती...!....उनकी आवाज़ में जंगली शेर की दहाड़ थी तो उमर ख्यायम की रुबाइयों में गूँजते रावाब का सोज़ भी था..सच की आवाज़ ऐसी ही होती है..! "हंगामा-हस्ती से अलग गोशा-नाशिनो/बेसूद रियाज़त का सिला माँग रहे हो..".... अपने वक़्त...अपने समाज को ख़ुद-मुख्तारी और मेहनत का सबक देने से पहले उन्होंने उसे अपनी ज़िंदगी में ढाला...वो ता'उम्र मेहनतकश रहे और दिलदार भी...उन्हें वक़्त ने कई थपेड़े दिए..दर्द दिए...बीमारियाँ दीं... लेकिन वो बस ये कह कर हँस देते.."च

उरी पर आतंकी हमले पर

उन लोगों की उम्र अभी मरने की तो नहीं थी  न ये वो जंग थी  जिसमे उनकी कुर्बानी होती  न ये दुर्घटना थी कोई  जिसे समाचार बनना था...  ये तो एक धोखा था  जैसे सोए शेर पर लकड़बग्घों का झुंड घात लगा कर हमला कर दे और नोच डाले ! ये तो ख़ौफ़ज़दा कुत्तों के धोख़े से काट लेने जैसा वाकया था ! या नाली के रास्ते आए साँपों का डसना / क्या पता साँप आस्तीन में ही हो ! मग़र इतना तो हुआ की सत्रह जवान जो अभी सत्तर साल तक सीना चौड़ा किये ज़िन्दा रहते अचानक से "क़त्ल" कर दिए गए ! तुम्हारा ख़ून भारत के ललाट पे तिलक बन कर दमक रहा है ! तुम्हारा ख़ून भारत की आँखों में उबल कर उतर रहा है ! तुम्हारा ख़ून भारत की नसों में ख़ौल रहा है / और ये कह रहा है --  हमे बदला नहीं चाहिए "इन्साफ़" चाहिए और आसमानी-किताबों में लिक्खा है "ख़ून का बदला ख़ून यही इन्साफ़ है" !! ओमा The अक् 19 sep 2016