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बेदाग-धब्बे

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बेदाग-धब्बे --------------- "कोई भी राष्ट्र तीन "ध" पर जीवित रहता है-- "धर्म" "धन" और "ध्येय"..!"-- The अक् "प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि बेदाग है!".... यह वाक्य कितना मनोहर है... जैसे मनोहर होते है समुद्र में तैरते "जेली फिश" के समूह... पर अध्ययन बताता है यह सुन्दर समूह समुद्र के सबसे जहरीले अंग हैं..!"  नरेंद्र मोदी की अभूतपूर्व लोकप्रियता और बहुमत भारत में एक अद्भुत "प्रतिक्रियात्मक-क्रांति" के रूप में समझी जानी चाहिए... यह उस समय के सत्तारूढ़ दल और उसके संवाहकों द्वारा "प्रोग्रेसिव" होने के नाम पर "हिन्दू-संस्कृति का अपमान" और बहूसंख्यक-जनता को हाशिये पर डालने के कुत्सित-प्रयास का परिणाम था... कुल मिला कर मेरे देखे यह "तथाकथित-विज्ञानवाद" और "छद्म-सेक्युलरिज्म" का मुंह तोड़ लोकतांत्रिक-जवाब भर था... घृणा से उभरी प्रतिघृणा की वह लहर जिस पर सत्ता की नाव ले कर नरेंद्र मोदी का भारत की केंद्रीय राजनीति में प्रवेश हुआ वो कदाचित "आर्क ऑफ नोहा&quo

पापा टाटा

पापा टाटा -----------------  "पापा टाटा... पापा टाटा...पापा टाटा... ये आवाज़ तब तक मेरे और मेरी बहनों की मुँह से निकलती रहती थी जब तक माथे पर भस्म-त्रिपुण्ड लगाए...मुँह में अम्मा के हाथ से लिया सादा-पान दबाए...झक सफ़ेद खादी का कुर्ता-पायजामा पहने... सर पर अंडाकार-टोपी लगाए... और आंखों पर रेबन-ब्लेक-चश्मा लगाए... अपनी "बजाज सुपर" स्कूटर पर बैठे मुड़ मुड़ कर देखते पापा गली से मुड़ कर आँखों से ओझल नही हो जाते थे...!  'आदमी समय के चूल्हे पर रखी हंडिया में उबल रहा है!'....  रविवार की सुबह है... शहर में "कोरोना" के नाम पर "लॉकडाउन" है... ये दो मनहूस शब्द 2 बरस से देश को सता रहे... अचानक खिड़की के दरवाजे पर दस्तक देते हुए "सिंह साहब" बोल पड़े - "हितेश जी! आपका फोन नही उठ रहा! गुरु जी के पापा की तबियत बिगड़ रही...!"... हितेश तो नही सुन सका... मैंने ही सुना... और जाग गया!  "कैलेंडर पर तारीख़ पलटती है समय नहीं!'... तब मैं बहुत छोटा था... कोई 6-7 साल का... और मूझसे डेढ़-साल के अनुपात से अंतराल में छोटी मेरी तीन बहनें... सबसे छोटी तो गो