अहिल्याबाई होलकर

अहिल्याबाई होलकर

"रात्रि का अंतिम प्रहर समाप्त होने को था...मन्दिर का किवाड़ खोल कर भीतर गए पंडितों ने देखा कि शिव-लिंग ने अपना स्थान स्वयम ही परिवर्तित कर लिया है..."हर हर महादेव"....जय काशी विश्वनाथ शम्भू... जय देवी अहिल्याबाई होलकर की...! काशी का प्रभाती-व्योम इन नारों से गुंज रहा था...शताब्दी के पश्चात काशी को भोलेनाथ और हिन्दू-समुदाय को उनका केंद्रीय-मन्दिर पुनः प्राप्त हो चुका था... हिन्दू समुदाय अंदर तक जाग उठा था भगवान् के इस चमत्कार से...इस्लाम और ईसाइयत के प्रचार में न दिखने वाले अल्लाह की व्यख्याएँ इस चमत्कार के आगे धुंधली पड़ चुकी थीं...ऊदास हो चुके धर्म को सूर्य की तेजस्वी-किरण ने पुनः स्पर्श कर लिया था!

मई की चिलचिलाती गर्मी में ३१ तारीख १७२५ के साल में "अहिल्या" का जन्म हुआ...वह जन्म से ही शिव भक्त थी...ऐसा प्रतीत होता था कि   वह रुद्राक्ष की कोई कली हो जिसने मानव देह धारण कर ली थी।...सनातन धर्म के सूत्र उसके रक्त में प्राण बन कर दौड़ने लगे थे...उसे कण कण में शंकर के दर्शन होते थे।..मात्र १२ वर्ष् की अवस्था मे उसका विवाह "खांडेराव होल्कर" के साथ कर दिया गया...वह उसमे भी शिव रूप ढूँढ कर उसे पूजने लगी...लेकिन वह एक चञ्चल चित्त और अस्थिर-चरित्र का पुरुष था...अनेक कष्ट सहते हुए अहिल्याबाई को मात्र २८ वर्ष् की अवस्था में वैधव्य झेलना पड़ा...छाती से पुत्र को सम्भाले हुए अहिल्या चाह कर भी सती न हो सकी...उसने अपने महादेव का स्मरण किया और कर्तव्य अग्नि में स्वयम का दाह कर सतीत्व की प्रथा को निभाया।

१ दिसम्बर १७६७ को अहिल्याबाई होल्कर मालवा की महारानी प्रतिष्ठित हुईं...और इस एक तिथि ने न केवल मालवा अपितु सम्पूर्ण-भारत के मानचित्र को सदा के लिए बदल दिया।...यूँ तो अहिल्याबाई एक छोटे से प्रान्त की रानी थीं पर उनकी सूझ बूझ, युद्ध कौशल, राजनीति, विदेश नीति, अर्थव्यवस्था, न्यायव्यवस्था और धार्मिक वृत्ति ने उन्हें सम्पूर्ण भारत मे सम्मानित कर दिया था। वह बहुत दूरदर्शी थीं... और स्त्री भी थीं...स्त्री! जो "बसाना" जानती है..."बनाना" जानती है.."निभाना" जानती है...हाँ! ये स्त्रैण-गुण हैं जो यदि किसी शासक में प्राप्त हों तो समझो रामराज्य आया....और वही हुआ... शीघ्र ही मालवा के राज्य को रामराज्य सी प्रसिद्धि प्राप्त हो गई। अहिल्याबाई धर्म और राष्ट्र के एकत्व को समझने वाली भारत के  नव-इतिहास् की एकमात्र शासक कही जा सकती हैं निःसन्देह!...एक ओर जहाँ छत्रपति शिवाजी का जीवन "मराठा" राज्य के विस्तार और मुग़ल सत्ता से लोहा लेने में बीत गया...या महाराणा का जीवन अपने स्वाभिमान और चित्तौड़ की स्वाधीनता को बचाने में व्यतीत हो गया..वहीं अहिल्याबाई ने अपनी सत्ता और शक्ति का उपयोग मात्र मालवा के हित मे न करके वैदिक-धर्म की पुनर्स्थापना में कर दिया और वह भी अपनी सीमाएं सुरक्षित रखते हुए।...वो इस लिए भी अनूठी थीं कि उन्होंने अपने कर्तव्य को केवल मालवा की राजगद्दी तक सीमित नही माना बल्कि उन्होंने बहुत अच्छे से जान लिया था कि माँ भारती को विधर्मी-षड्यंत्र से बचाना ही उनका मूल कर्तव्य है... धर्मांतरण की आँधी को सम्पूर्ण भारत में रोकना ही उनका उत्तरदायित्व है और इसके लिए वो ६ मास की भारत यात्रा पर निकल पड़ीं...इस मार्ग में उन्होंने अनेक विस्मृत-सनातन-तीर्थों को पुनर्जीवित किया और कई खंडहरों से शिवालय तराशे..क्यों कि वह विदुषी यह जानती थी कि धर्म का विस्तार भाषणों/ध्वजाओं/सिंहसानो /सीमाओं या विधर्मी से घृणा कर के नही हो सकता बल्कि यह केवल और केवल धर्म के सौंदर्य को विस्तीर्ण करते हुए ही हो सकता है...क्यों कि सौंदर्य से अधिक लोकप्रिय कुछ भी नहीं।।

समय कभी भी अहिल्याबाई के पक्ष में नहीं रहा... युवावस्था में पति...अधेड़ावस्था में पुत्र और पौत्र...फिर ज्यामता और पुत्री की मृत्यु ने उन्हें विरक्ति से भर दिया था...नेत्र अश्रु विहीन हो चले थे...देह भी टूटी टूटी थी...किन्तु आत्मा का तेज दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था...और आज काशी में तो चमत्कार ही हो गया था...औरंगज़ेब के काल मे ध्वस्त "विश्वनाथ" आज पुनर्प्रतिष्ठित थे..."काबा-ए-हिन्द" आज फिर जी उठा था..सनातन धर्म आज फिर गर्वित था। और यह विधवा रानी देवत्व के शिखर पर विद्यमान हो चुकी थी। इस घटना के लगभग दो-दशकों पश्चात १३ अगस्त १७९५ को महारानी अहिल्याबाई होलकर ने भवसागर से विदा ले ली...रुद्राक्ष की कली ने मानव देह उतार फेंकी...और अपने महादेव के गले पर माला में बिंध झूलने लगी...अहिल्याबाई की देह को चिता की अग्नि पर लिटा दिया गया..और चन्दन की लकड़ी ने देह को फूँकना प्रारम्भ कर दिया...कुछ ही समय के अंतर में वह देह भस्म बन चुकी थी अविनाशी-शिव के त्रिपुंड में समाने को...यह भस्म एक महान स्त्री की थी...वह स्त्री जो भारत की भूमि पर शासन करने वाली एकमात्र हिंदू हृदय साम्राज्ञी थी..!

३१ मई २०१८
ओमा The अक् 

(महारानी अहिल्याबाई के जन्मदिन पर श्रद्धा के साथ )

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