बसंत

बसंती भागीदारी
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बसंत तुम सब जगह क्यों नहीं आते..?
तुम आते तो हो
राजप्रासादों में
विशाल उपवन में
पूंजीपतियों
राजनेताओं
और नौकरशाहों
की तिजोरियों में/
और तो और
आजकल
मल्टीफैसलिटी हस्पतालों
पब्लिक स्कूलों
मीडया हाउसेज
और प्रयोजित धर्मगुरुओं
की बैलेंस शीट में भी
तुम सदाबहार हो गए हो/
तुम आते तो हो
किसी भी मुर्दाखोर
समुदाय के
कुटिल मस्तिष्क में
फिर उनकी अय्याश दुनिया में भी!
किन्तु तुम क्यों नही आते हो
किसी ट्राफिक सिग्नल के किनारे
अनायास पैदा हुए
दुधमुंहे बच्चे के
भूखे पेट में/
किसी बलात्कारी के
पथरीले मन में/
किसी लोभी की बन्द मुट्ठी में
या--
अचानक बन्द हुए देश की
सौकड़ो मील लंबी
रेल पटरियों पर/
सांस के लिए तड़पते
बिस्तरों के आसपास/
बसंत तुम क्यों नहीं आते
किसी अफवाह के कारण हुए
दंगे में झुलसते नगर के
दंगाइयों के विवेक में/
भूख मिटाने को कटिबद्ध
कर्ज से आत्महत्या करते
ग्राम-देवताओं की जेब में/
धन, सम्प्रदाय व समुदाय के
नाम पर घृणा फैलाते
सत्ता लोलुप आंखों में
किसी ओस भरी सुबह से
क्यों नही उतराते हो तुम
की उनके सड़ते हुए मन मे भी
कुछ ज़िन्दा कँवल खिल उठे/

वंसन्त!
तुम अबकी आओ तो
सब जगह आना
हर ओर फूल खिलाना
क्यों कि बसंत में
सबकी भागीदारी होती है
क्यों कि सबकी भागीदारी ही
असली बसंत है
क्यों कि वंसन्त का "सिलेक्टिव" होना
प्रकृति का असमय
गर्भपात होने जैसा होता है!!

18 feb 2022
ओमा The अक्©


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