कूपमण्डूक

कूपमंडूक-4
(सभी दलों के दलदल के नाम)
"आकाश पर पंछियो की उड़ान और और मस्ती के बीच लाल-नीले कंठ वाले तोते की आवाज़ सभी को लुभाने क्या लगी कि कूपमंडूक का माथा ठनक गया.... "अर्रर्र ये क्या इसकी आवाज़ ज़रा तेज़ और लोकप्रिय क्या है कि इसने सारा आकाश ही सर पर उठा रखा है और देखो बाकी के तोते भी इसके साथ सुर मिला रहे है ".. कूपमंडूक ये टर्रा ही रहे थे ... कि कुँए का एक मेंढक बोल पड़ा..."कुछ भी कहो मगर इस तोते की आवाज़ में दम तो है... अकेला सौ के बराबर बोलता है..."...आएँ!! कूपमंडूक को जुगत सूझी और वह उछल कर कुँए की दीवार पर चिपक लिए और चिल्ला पड़े- "मेरे प्यारे मंडूकों ! आओ-आओ  हम सब एक साथ हो जाएँ! इक्कठे हो जाएँ! एक वृहद् मंडूक- दल बनाये!.. जिसमे एक नहीं,दस नहीं , सौ नहीं ,कई सौ मंडूक एक साथ मिलकर टर्राएं...और इस तोते की आवाज़ को अपनी एकजुट तर्राहट से बेकार बनाएं.. "
कूपमंडूक का जोशीला-भाषण सुन कर कुँए की मुंडेर पर बैठा कौआ बोला --"अरे मूर्खो... तुम लोग कितना भी चिल्लाओ मगर तुम कभी भी उस तोते को पछाड़ नहीं पाओगे...  क्योंकि वो आकाश में उड़ता सबको अपनी आवाज़ सुना रहा है... और तुम लोग अपने ही कुँए में क़ैद बेमानी-शोर मचा रहे हो ".. कौआ बोलता रहा ... मगर क्या फ़र्क़... कौन सुने ... कुँए के सारे मेंढक तो एक स्वर में टर्रा टर्रा कर तोते की आवाज़ का मुकाबला करने में लगे थे....":-P

By.. Oma the akk

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