गांधी
दो अक्तूबर
*************
"दो अक्तूबर आज मना लो!
लेकिन ध्यान रहे
पत्थर से
कागज से
शीशे-लकड़ी के
बड़े बड़े "फ्रेमों" से
गाँधी निकल न आए!
निकल जो आया गाँधी बाहर
तब मंहगा पड़ जाएगा
ये दो ओक्टुबर!
गाँधी बाहर आया
तो फिर लाठी ले कर
दौड़ पड़ेगा-
दूर दूर खेतों में
नंगे बदन खड़े
कमज़ोर किसानों की सुध लेने/
दौड़ पड़ेगा-
गन्दी गन्दी सी गलियों में
जहाँ सफाई वाले
सारा शहर झाड़ कर
सारी मैल-गंदगी
अपने घर लाते हैं
और सौंप देते हैं
उन नवजातों को
जो संविधान की रेख लिए
जन्मे थे घर घर/
दौड़ पड़ेगा-
दुहिताओं-अबलाओं की
सुध-बुध लेने को
और कहेगा साथ चलो
फिर नमक उठाना है तुमको
सब नदी निगल कर
चुप बैठे
शातिर सागर से/
दौड़ पड़ेगा
नंगा गाँधी!
संगेमरमरी सी संसद पर
टूट पड़ेगा-
हर उस पद पर
जिसने शपथ
गोपनीयता और न्याय-सत्य की
खा रक्खी है
पूछेगा उनसे गाँधी-
"क्या सत्य अर्थ भी रखता है कुछ
या बस 'अर्थ' सत्य है तेरा?"
हो सकता है
उत्तर अथवा असमंजस को देख
रूष्ट हो जाए गाँधी
अबकी बार भूल कर
अपना पिछला सब संकल्प
उठा ले लाठी
और फोड़ दे सब के सर
जो "सर-सर"
कहने और सुनने के आदि हो कर
भूल चुके हैं तथ्य एक यह -
"लोकतंत्र महलों में नहीं
सड़क, गलियों
खेतों खलियानों में रहता है!"
इसी लिए यह बेहतर है
तुम दो ओक्टुबर खूब मनाओ
खबर खबर गाँधी चिल्लाए
पर सचेत हो
गाँधी अपनी तस्वीरों से
बुतों, कथाओं
और समाधि से
बाहर को निकल न पाए..!!"
२ अक्टूबर २०२१
ओमा The अक्©
****************
*************
"दो अक्तूबर आज मना लो!
लेकिन ध्यान रहे
पत्थर से
कागज से
शीशे-लकड़ी के
बड़े बड़े "फ्रेमों" से
गाँधी निकल न आए!
निकल जो आया गाँधी बाहर
तब मंहगा पड़ जाएगा
ये दो ओक्टुबर!
गाँधी बाहर आया
तो फिर लाठी ले कर
दौड़ पड़ेगा-
दूर दूर खेतों में
नंगे बदन खड़े
कमज़ोर किसानों की सुध लेने/
दौड़ पड़ेगा-
गन्दी गन्दी सी गलियों में
जहाँ सफाई वाले
सारा शहर झाड़ कर
सारी मैल-गंदगी
अपने घर लाते हैं
और सौंप देते हैं
उन नवजातों को
जो संविधान की रेख लिए
जन्मे थे घर घर/
दौड़ पड़ेगा-
दुहिताओं-अबलाओं की
सुध-बुध लेने को
और कहेगा साथ चलो
फिर नमक उठाना है तुमको
सब नदी निगल कर
चुप बैठे
शातिर सागर से/
दौड़ पड़ेगा
नंगा गाँधी!
संगेमरमरी सी संसद पर
टूट पड़ेगा-
हर उस पद पर
जिसने शपथ
गोपनीयता और न्याय-सत्य की
खा रक्खी है
पूछेगा उनसे गाँधी-
"क्या सत्य अर्थ भी रखता है कुछ
या बस 'अर्थ' सत्य है तेरा?"
हो सकता है
उत्तर अथवा असमंजस को देख
रूष्ट हो जाए गाँधी
अबकी बार भूल कर
अपना पिछला सब संकल्प
उठा ले लाठी
और फोड़ दे सब के सर
जो "सर-सर"
कहने और सुनने के आदि हो कर
भूल चुके हैं तथ्य एक यह -
"लोकतंत्र महलों में नहीं
सड़क, गलियों
खेतों खलियानों में रहता है!"
इसी लिए यह बेहतर है
तुम दो ओक्टुबर खूब मनाओ
खबर खबर गाँधी चिल्लाए
पर सचेत हो
गाँधी अपनी तस्वीरों से
बुतों, कथाओं
और समाधि से
बाहर को निकल न पाए..!!"
२ अक्टूबर २०२१
ओमा The अक्©
****************